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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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__ भाई-हाँ, बहिन ! रत्नत्रय के एक अंश की आराधना गृहस्थ के भी हो सकती है।
बहिन-क्या हम जैसे छोटे बालक भी रत्नत्रय की आराधना कर सकते हैं? ___ भाई-हाँ, खुशी से कर सकते हैं, परन्तु ये रत्नत्रय का मूल बीज सम्यग्दर्शन है; अतः प्रथम उसकी आराधना करना चाहिए। __ बहिन-अहा! सम्यग्दर्शन की तो अपार प्रशंसा सुनी है। भाई! उस सम्यग्दर्शन की आराधना किस प्रकार से होती है? __ भाई-सुन, बहिन! आत्मा की पूरी लगन से, ज्ञानी-अनुभवी के पास से उसकी पक्की समझ करना चाहिए, और फिर अन्तर्मुख होकर उसका अनुभव करने से सम्यग्दर्शन होता है। ___बहिन-ऐसा सम्यग्दर्शन होने पर आत्मा का कैसा अनुभव होता है?
भाई-अहा! उसका क्या कहना? सिद्धभगवान जैसे अतीन्द्रिय आनन्द का अनुभव उसमें होता है।
बहिन-भैया! मोक्षशास्त्र में कहा है कि 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' सो यह श्रद्धा व्यवहार है, या निश्चय?
भाई-यह निश्चय श्रद्धा है, क्योंकि वहाँ पर मोक्षमार्ग दिखाना है; और सत्य मोक्षमार्ग तो निश्चयरत्नत्रय ही है।
बहिन-तत्त्व कितने हैं? भाई-तत्त्व नव हैं; और इन तत्त्वों की श्रद्धा, वह सम्यग्दर्शन है। बहिन-उन तत्त्वों के नाम बताईये।
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