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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
। भाई-बहन की धर्मचर्चा |
। एक जैन सद्गृहस्थ के घर में सभी सदस्य उत्तम संस्कारी थे; इनमें आनन्दकुमार-भाई तथा धर्मवती-बहिन, वे दोनों बाहर की विकथा में या सिनेमा-रेडियो वगैरह में रस न लेकर के प्रतिदिन रात्रि के समय तत्त्वचर्चा करते थे, या महापुरुषों की धर्मकथा के द्वारा आनन्द प्राप्त करते थे। वे भाई-बहिन कैसी अच्छी चर्चा करते थे, उसका नमूना यहाँ दिया है। आप भी अपने भाई-बहिन के साथ में धर्मचर्चा करते ही होंगे! यदि न करते हो तो अब से जरूर करना। आज ही उसका मङ्गल प्रारम्भ कर दो; और फिर आपने कौन सी चर्चा की-वह हमें भी लिखना।
___ -'जय महावीर' धर्मवती बहिन कहती है— भैया! अनन्त काल के संसारभ्रमण में हमें ऐसा दुर्लभ मनुष्य अवतार मिला है; तो अब इस जीवन में हमें क्या करना चाहिए? __ आनन्दकुमार भाई कहता है-बहिन! मनुष्य जीवन पाकर हमें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की आराधना करना चाहिए।
बहिन-भैया ! सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वरूप रत्नत्रय की आराधना कैसे हो?
भाई-बहिन! इन रत्नत्रय के मुख्य आराधक तो मुनिराज है; वे चैतन्यस्वरूप में लीन होकर रत्नत्रय की आराधना करते हैं। ___ बहिन-भैया जी! आपने कहा कि रत्नत्रय के मुख्य आराधक मुनिराज हैं, तो क्या गृहस्थों के भी रत्नत्रय की आराधना हो सकती है?
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