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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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जिनरूप भी सम्यग्दर्शन के बिना शोभा नहीं देता। (वह तो प्राणरहित सुन्दर शरीर जैसा है)।
*दर्शनरहित जीव कभी निर्वाण को प्राप्त नहीं करता। सम्यक्त्व से अलंकृत जीव कदाचित् चारित्रादि से च्युत हो गया हो, वह भी फिर से चारित्र पाकर मोक्ष पायेगा।
* जैसे नेत्रहीन जीव, रूप को नहीं जानता; वैसे सम्यक्त्व चक्षुरहित अन्ध जीव, देव-गुरु को या गुण-दोष को नहीं जानता।
* जैसे प्राणरहित शरीर को मृतक कहा जाता है; उसी प्रकार दृष्टिहीन जीव को चलता मृतक कहा जाता है।
* सम्यक्त्वरहित जीव भले मात्र नमस्कार मन्त्र को ही जानता हो, तथापि गौतम आदि भगवन्त उसे सम्यक्त्वी कहते हैं और सम्यक्त्वरहित जीव, ग्यारह अङ्ग को जानता हो, तथापि उसे अज्ञानी कहा है।
* अहो! यह सम्यग्दर्शन है, वह ज्ञान-चारित्र का बीज है, मुक्ति सुख का दातार है, उपमारहित अमूल्य है; उसे हे जीव! तू सुख के लिये ग्रहण कर। _*जिसने अपने सम्यक्त्व रत्न को स्वप्न में भी मलिन नहीं किया, वह जीव जगत् में धन्य है-पूज्य है-वन्द्य है और उत्तम बुधजनों द्वारा प्रशंसनीय है। ___ * दृष्टि रत्नसहित वह जीव जहाँ-तहाँ अनेक महिमायुक्त और सर्व इन्द्रियसुखों के मध्य में रहने पर भी, धर्मसहित रहता है तथा कल्याण परम्परासहित तीन लोक को आश्चर्य करनेवाले धर्मचक्र द्वारा शोभित होता है; अनन्त महिमायुक्त, दर्शनीय और सुख की
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