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________________ www.vitragvani.com 26] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 * सम्यक्त्व से अलंकृत देह भी देवों द्वारा पूज्य है परन्तु सम्यक्त्वरहित त्यागी भी पद-पद पर निन्दनीय है। * एक बार सम्यक्त्व को अन्तर्मुहूर्तमात्र भी ग्रहण करके, कदाचित् जीव उसे छोड़ भी दे तो भी निश्चित् वह अल्प काल में (पुनः सम्यक्त्वादि ग्रहण करके) मुक्ति प्राप्त करेगा। * जिस भव्य को सम्यक्त्व है, उसके हाथ में चिन्तामणि है, उसके घर में कल्पवृक्ष और कामधेनु है। * इस लोक में निधान की तरह सम्यक्त्व, भव्य जीवों को सुखदाता है; वह सम्यक्त्व जिसने प्राप्त किया, उसका जन्म सफल है। * जो जीव, हिंसा छोड़कर, वन में जाकर अकेला बसता है और सर्दी-गर्मी सहन करता है परन्तु यदि सम्यग्दर्शनरहित है तो वन के वृक्ष जैसा है। * सम्यक्त्वरहित जीव, दान-पूजा-व्रतादिक जो किञ्चित् पुण्य करते हैं, वे सर्व विफल हैं... विरुद्ध फलवाले हैं। * दृष्टिहीन जीव किञ्चित् दया-दानादि पुण्य करके उसके फल में इन्द्रियभोग पाकर वापस भव-भ्रमण में भटकता है। * सम्यक्त्व के बल से जो कर्म सहज में नष्ट होते हैं, वे कर्म सम्यक्त्व के बिना घोर तप से भी नष्ट नहीं होते। * सम्यक्त्वादि से विभूषित गृहस्थपना भी श्रेष्ठ है क्योंकि वह व्रत-दानादि से संयुक्त है और भावी निर्वाण का कारण है। * मुनि के व्रतसहित, सर्वसङ्गरहित, देवों से पूज्य ऐसा निर्ग्रन्थ Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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