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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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कर इष्ट की प्राप्ति का उपदेश
आत्मा का अतीन्द्रियसुख, मुमुक्षु को इष्ट है, उसकी प्राप्ति का उपदेश ही इष्ट-उपदेश है; दूसरा कोई उपदेश हमें इष्ट नहीं लगता।
अतीन्द्रियज्ञान और अतीन्द्रियसुख आत्मा का स्वभाव है। उस स्वभाव का पूर्ण परिणमन हो, वह मुमुक्षु का मनोरथ है। शुद्धोपयोग द्वारा उस मनोरथ की सिद्धि होती है। ___ इष्ट सुख की प्राप्ति में विघ्न करनेवाली मोहदृष्टि थी; आत्मा, शुद्धोपयोग धर्मरूप से परिणमित हुआ, वहाँ उस विघ्न का नाश हुआ और इष्ट की प्राप्ति हुई; इसलिए इष्ट के स्थानरूप शुद्धोपयोग सर्वथा प्रशंसनीय है।
वह शुद्धोपयोग कब होता है? आत्मा का जैसा ज्ञानानन्दस्वभाव है, वैसा जानकर स्वसंवेदन में ले, (अर्थात ज्ञाता-ज्ञेय की एकरूपता हो), तब शुद्धोपयोग होता है। आत्मा का स्वभाव समझने के लिये आचार्यदेव ने सिद्ध भगवान का उत्कृष्ट उदाहरण दिया है। (प्रवचनसार गाथा 68)
ज्यों आभ में स्वयंमेव भास्कर उष्ण-देव-प्रकाश है; त्यों सिद्ध भी स्वयंमेव लोक में ज्ञानसुख और देव है॥
जिस प्रकार सिद्ध भगवन्त किसी के अवलम्बन बिना स्वयमेव पूर्ण अतीन्द्रियज्ञान-आनन्दरूप से परिणमन करनेवाले दिव्य सामर्थ्यवाले देव हैं; उसी प्रकार समस्त आत्माओं का स्वभाव भी ऐसा ही है। अहा! ऐसा निरालम्बी ज्ञान और सुखस्वभावरूप मैं हूँ-ऐसा लक्ष्य में लेते ही जीव का उपयोग, अतीन्द्रिय होकर
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