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[ सम्यग्दर्शन : भाग-6
और सुख तो मेरा स्वभाव ही है। मैं मेरे स्वभाव से ही ऐसे महान ज्ञान और सुखरूप होता हूँ; उसमें जगत के दूसरे किसी की अपेक्षा मुझे नहीं है । अरे ! सुख में तन्मय हुई मेरी ज्ञानचेतना को जहाँ रा के साथ भी सम्बन्ध नहीं, वहाँ बाहर में दूसरे किसी के साथ सम्बन्ध कैसा ? इस प्रकार धर्मी जीव अपनी ज्ञानचेतना में किसी भी परभाव को नहीं मिलाता; शुद्ध ज्ञान- उपयोगरूप से परिणमतेपरिणमते वह मोक्ष के महान आनन्द को साधता है।
- यह है मोक्ष का मङ्गल उत्सव !
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