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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [183 आत्मा का सच्चा जिज्ञासु होकर उसके लिये जो उद्यम करता है, उसका उद्यम अवश्य सफल होता है और उसे आत्मा की प्राप्ति होती है, महान सुख होता है। इसलिए जिस प्रकार धन का अभिलाषी, राजा को पहचानकर, श्रद्धापूर्वक उसकी सेवा करता है; वैसे मुमुक्षु को ज्ञानस्वरूप जीवराजा को पहचानकर, श्रद्धापूर्वक सर्व उद्यम के द्वारा उसका सेवन करना चाहिए-इससे आत्मा की अवश्य सिद्धि होती है। सर्व प्रथम उस पद को पाने के लिये उसकी अपार महिमा भासती है; जिसका अनुभव पहले कभी नहीं हुआ—ऐसे अभूतपूर्व आनन्द की अनुभूति के लिये उसे मस्ती जागृत होती है। ज्ञानी की अद्भुत मस्ती को ज्ञानी ही पहचानता है। जिसको उसका स्वानुभव प्राप्त हो, उसे ही उसका भान होता है। बाकी वाणी से, बाह्य चिह्नों से या राग से उसकी पहचान नहीं हो सकती। ज्ञानी की स्वानुभूति का पथ जगत से निराला है। उसकी गम्भीरता उसके अन्तर में ही समायी रहती है। वह अकेला ही अन्तर में आनन्द का अनुभव करता हुआ मोक्षपथ पर चला जा रहा है; उसे जगत की परवाह नहीं रहती। धर्म के प्रसङ्ग में तथा धर्मात्मा के सङ्ग में उसको विशिष्ट उल्लास आता है। जिनमार्ग के प्रताप से मुझे अपना स्वरूप प्राप्त हुआ; आत्मा में अपूर्व भाव जागृत हुए। अब इस स्वरूप को पूर्णतः प्रगट करके अल्प काल में ही मैं परमात्मा बन जाऊँगा, और इस संसारचक्र से छूटकर मोक्षपुरी में जाऊँगा। जहाँ हमेशा के लिये सिद्धालय में अनन्त सिद्धों के साथ बिराजमान होऊँगा। वाह... धन्य है उस दशा! उसका मङ्गल प्रारम्भ हो चुका है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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