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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
6 तेरे हित के लिये सन्तों का तुझे अपूर्व आशीर्वाद है की न सुखी होने का आशीर्वाद - BSE
अतीन्द्रियसुख, वह आत्मा का स्वयं का स्वभाव है, उस सुख के लिये उसे दूसरी किसी सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती। अहा! आत्मा का ऐसा स्वाधीन अतीन्द्रियसुख किसे नहीं रुचेगा? रागरहित इस महान आनन्द की वार्ता सुनते हुए किस मुमुक्षु के हृदय में आनन्द नहीं होगा? मुमुक्षु जीव किसी भी बाह्य पदार्थ से रहित आत्मा के सुख को उत्साह से स्वीकार करता है कि वाह ! यह तो मुझे परम इष्ट है, आत्मा का सुख मुझे अत्यन्त प्रिय है-इस प्रकार भव-दुःख से थका हुआ जीव, आत्मा के स्वभाव-सुख को उत्साह से स्वीकार करता है। इस प्रकार उत्साह से अपने स्वभाव -सुख को स्वीकार करता हुआ वह मुमुक्षु, उस स्वभाव में उतरकर सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है और अतीन्द्रियसुख का स्वाद चख लेता है।
अहा! कुन्दकुन्दस्वामी ने और सर्व सन्तों ने हृदय खोलखोलकर जो सुख के गीत गाये हैं, उस सुख के अनुभव की क्या बात ! भगवान महावीर के मार्ग के अतिरिक्त ऐसा सुख दूसरा कौन बताये? श्रीगुरु आशीर्वाद देते हैं कि हे भव्यजीवों! महावीर के मार्ग को सेवन करो और आत्मा के सुख को प्राप्त करो।
अभी भगवान के मोक्ष के ढाई हजार वर्ष का मङ्गल उत्सव चल रहा है। जिस प्रकार बुजुर्ग मङ्गल प्रसङ्ग पर आशीर्वाद देते हैं कि तुम सुखी होओ! उसी प्रकार आनन्द रस को पीनेवाले वीतरागी सन्त मोक्ष साधने के मङ्गल प्रसङ्ग पर आशीर्वाद देते हैं कि हे
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