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सम्यग्दर्शन : भाग -6 ]
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आज ही अनुभव कर सन्तों का तुझे आशीर्वाद है
अन्तर में परम सर्वोत्कृष्ट प्रेम लाकर आत्मा को जानने से आनन्दसहित वह अनुभव में आता है । श्रीगुरु कहते हैं कि - अरे मुमुक्षुजीवों ! तुम्हारा हित करने के लिये, आनन्द का अनुभव करने के लिये, धीरे-धीरे नहीं परन्तु शीघ्र - अभी ही आत्मा का उत्कृष्ट प्रेम करो... अन्तर में आत्मा की धुन जगाकर आज ही उसे अनुभव में लो... उसमें विलम्ब मत करो । ' अभी दूसरा और आत्मा बाद में' - ऐसा विलम्ब मत करो, सबका प्रेम छोड़कर आत्मा का प्रेम आज ही करो । आत्मा के हित के कार्य को गौण मत करो। अभी ही हित का अवसर है, हित के लिये अभी ही उत्तम चोघड़िया है । ऋषभदेव भगवान के जीव को सम्यक्त्व का उपदेश प्रदान करते हुए मुनिराज ने कहा था कि
रे ग्रहण कर सम्यक्त्व को, तत्प्राप्ति का है काल यह ! तत् गृहाण आद्य सम्यक्त्वं तत्लब्धये काल एष ते !
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और तुरन्त ही उस जीव ने सम्यक्त्व को ग्रहण किया... उसी प्रकार हे जीव ! श्रीगुरु का उपदेश प्राप्त करके तू भी आज ही सम्यक्त्व को ग्रहण कर ।
तेरे हित के लिये सन्तों का तुझे आशीर्वाद है । •
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