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________________ www.vitragvani.com 170] [ सम्यग्दर्शन : भाग-6 का मार्ग बतानेवाले देव-शास्त्र - गुरु पर जिसकी पूर्ण श्रद्धा है, और उनके पास जाकर अन्य सब अभिलाषाओं को छोड़कर महान निजवैभव की प्राप्ति के लिये जो पुकार करता है - ऐसी अन्तरङ्ग विचारधारावाला जीव, आत्मसन्मुख धारा के द्वारा अल्प समय में ही अवश्य सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है और महान शान्ति का वेदन करता है । अहो ! सम्यग्दर्शन होने के पूर्व ऐसे आत्मसन्मुख मुमुक्षु जीव का भी रहन-सहन एवं विचारधारा में कोई अलौकिक परिवर्तन हो जाता है । वह जिज्ञासु जीव सोचता है कि अरे ! अज्ञानभाव से देह के लिये मैंने अनेक जीवन गँवाये और मैं दुःखी हुआ। अब तो इस भवदुःख से छूटने के लिये आत्मा के निजकल्याणार्थ सर्वस्व अर्पण करके यह एक जीवन तो ऐसे व्यतीत करूँगा कि अनन्त काल की मेरी भूख दूर हो जाय और मुझे अपूर्व शान्ति प्राप्त हो । यह दुर्लभ मनुष्य भव और ऐसे उत्तम देव-गुरु-धर्म को पा करके भी यदि मैं अपना हित नहीं करूँगा तो फिर मेरे दुःख का कहीं भी अन्त नहीं आयेगा और संसार में कहीं भी शान्ति नहीं है; इसलिए इस जीवन का प्रत्येक क्षण अपने आत्मा के हित के लिये ही मैं व्यतीत करूँगा। - इस प्रकार आन्तरिक पुकार करता हुआ जो जिज्ञासु, अतीन्द्रिय-आनन्द का तीव्र चाहक बना हो, उसे अन्यत्र कहीं भी रस नहीं आता; वह चैतन्य के ही परमरस की पुष्टि करता है । संसार के कलबलाहट को छोड़कर, अन्तर में एक आत्मप्राप्ति का ही ध्येय है; आत्मा के अनुभव के लिये उसके अन्तर में उथल-पुथल मची रहती है । अनादि से जिन विषय - कषायों में Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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