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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [157 आँखों से किसी वस्तु को देखा, फिर आँखें न हों तो भी वह ज्ञान कायम ही रहता है, क्योंकि जाननेवाला आँख से भिन्न है। विकल्पों कम करते-करते भी आत्मा को बाधा नहीं आती, विकल्प छूट जाने पर भी आत्मा अबाधस्वरूप कायम रहता है । इस प्रकार मैं विकल्प से पार चैतन्यस्वरूप जीव हूँ-ऐसे वह अपने निजस्वरूप को लक्ष्य में लेता है। इस प्रकार मुमुक्षु ने अपना शुद्धस्वरूप जैसा है, वैसा अपनी दृष्टि में लिया है। वह अपने शुद्धस्वरूप को पहचानकर स्व में ही एकत्वरूप अनुभूति करता है; उसको पर के साथ जरा भी सम्बन्ध नहीं है; वह पर को जानता हुआ भी, उसमें एकत्वरूप परिणत नहीं होता; अपने आत्मा को जानते हुए उसमें एकत्वरूप से परिणत होता है। इस प्रकार पर से विभक्त और स्व में एकत्वस्वरूप उसका 'ज्ञायक-जीवन' है। ज्ञानी होने के लिये प्रथम, मुमुक्षु जीव को आत्मा के आदर्शस्वरूप सिद्ध भगवान और अरिहन्त भगवान लक्ष्य में आता है। मैं उनके सदृश हूँ-इस प्रकार शुद्धदृष्टि से वह आत्मा की भावना भाता है। और वैसी ही दशा प्रगट करने की भावना उसे आयी है। पूर्णता के लक्ष्य से वह प्रारम्भ करता है। अपनी सर्वतः शुद्ध मोक्षदशा की भावना, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से सर्व प्रकार से स्वयं शुद्धरूप बनने की भावना ज्ञानी जीव को होती है। द्रव्यगुण जैसे शुद्ध हैं, वैसी शुद्धता के अंश का अपनी पर्याय में आस्वादन किया है, और वह कब पूर्ण हो-ऐसी भावना उसे होती है। भले ही पर्याय के भेद-विकल्पों को हेय कहा जाय, परन्तु Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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