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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-6] [149 आत्मा को जाने बिना सब निष्फल है - [सम्यक्त्वजीवन लेखमाला : लेखांक 10] आत्मा सम्यक्त्व के बिना सब निष्फल है-ऐसा समझकर जिज्ञासु जीव, आत्मा की पहिचान में रस लेता है। अन्तर में परम स्वभाव से भरपूर भगवान आत्मा के सन्मुख होने पर ही परमतत्त्व की प्राप्ति होती है, और आनन्द का खजाना अपने में ही दृष्टिगोचर होता है। जड़ शरीर के अङ्गभूत इन्द्रियाँ, वे कहीं आत्मज्ञान की उत्पत्ति का साधन नहीं होती। अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभाव को ध्येय बनाकर जो ज्ञान होता है, वही आत्मा को जाननेवाला है-ऐसे ज्ञान की अनुभूति से सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाने पर मुमुक्षु को अपना आत्मा सदैव उपयोगस्वरूप ही जानने में आता है। सम्यग्दर्शन होने के पहले जिज्ञासु को जिनमार्ग के देव-गुरु -धर्म के प्रति श्रद्धा होती है, और व्यवहारधर्म का आराधन अपनी समझ के अनुसार वह करता है; जिनपूजा-दया-दान-स्वाध्याय इत्यादि में वह रस लेता है परन्तु जब उसे ज्ञानी-गुरु का उपदेश प्राप्त होता है और खबर पडती है कि आत्मा के सम्यग्दर्शन के बिना यह सब मोक्ष के लिये कुछ भी कार्यकारी नहीं हैं, तब उसे सम्यक्त्व की भावना जागृत होती है, और वह आत्मा की समझ में रस लेता हुआ उसे साधने का प्रयत्न करने लगता है। उसे देव-गुरु-धर्म के सत्य स्वरूप की, पहचान होने लगती है; व्यवहारिक धर्म की प्रवृत्ति का रस धीरे-धीरे छूटता जाता है, और उसके मन का झुकाव निश्चयधर्म की ओर ढलने लगता है; तब पञ्च परमेष्ठी के स्वरूप को द्रव्य-गुण-पर्याय से पहचानकर, उनके जैसे अपने Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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