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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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तब फिर, अरे अज्ञानी! जिस जीवतत्त्व को जड़ का काम करते तूने कभी देखा नहीं, जिस जीवतत्त्व ने शरीर के पुद्गल के अन्दर प्रवेश भी नहीं किया, जिस जीवतत्त्व को तू पहचानता भी नहीं, और जिस जीवतत्त्व में अजीव का कोई निशान भी नहीं है-ऐसे निर्दोष सत् चैतन्यतत्त्व के ऊपर तू जड़-पुद्गल के साथ सम्बन्ध का मिथ्या आरोप लगाता है, तो इससे तुझे मिथ्यात्व का पाप लगेगा।
चैतन्यतत्त्व को पर का कर्ता कहकर तू उसका अवर्णवाद कर रहा है, यह बहुत भारी अपराध है। अतः यह बात समझ ले कि
-जैसे माँस खाना और साता होना—ये दोनों एक ही काल में होते हुए भी, दोनों के कारण-कार्य भिन्न-भिन्न हैं;
-जैसे गायों को काटना और पैसा मिलना, इन दोनों के कार्य-कारण भिन्न-भिन्न हैं। ___ - वैसे जड़ की क्रिया और ज्ञान की क्रिया-ये दोनों एक साथ होते हुए भी दोनों के कारण-कार्य सर्वथा भिन्न-भिन्न हैं।
प्रत्येक वस्तु के सच्चे कारण-कार्य को जानो; जीव के कारण -कार्य को जीव में ही जानो तथा अजीव के कारण-कार्य को अजीव के मानो-ऐसा भेदज्ञान, वह जैनधर्म की उत्तम नीति है; उस जैननीति का पालन करनेवाला जीव, मोक्ष को साधता है; और जैननीति का उल्लंघन करनेवाला (अर्थात् जड़-चेतन के कारण -कार्य को भिन्न न मानकर एक-दूसरे में मिला देनेवाला) जीव, संसार की जेल में फँसकर दुःखी होता है। वीर मार्ग को पाकर जड़-चेतन का सर्वथा भेदज्ञान करो... और भव-दुःख से छूटकर मोक्षसुख को पाओ।
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