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________________ www.vitragvani.com 138] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 - तो कलङ्क लगानेवाले से हम पूछते हैं कि हे भाई! * क्या उस सज्जन को राजमहल में चोरी करता हुआ तूने देखा है?.... ना। * क्या उस सज्जन की सजनता को तू पहचानता है ?... ना। * क्या उस सज्जन के पास में चोरी का माल तूने देखा है?... ना। अरे दष्ट! जिस सज्जन को तने चोरी करता हुआ देखा नहीं, जो सज्जन राजमहल में कभी आया नहीं, जिस सज्जन को तू पहचानता भी नहीं. और जिस सज्जन के पास में चोरी का कोई माल होने का सबूत नहीं है-ऐसे सज्जन के ऊपर चोरी का मिथ्या कलङ्क तू लगा रहा है तो इससे तुझे महान पाप होगा। __उसी प्रकार-(यहाँ सज्जन अर्थात् चेतनरूप जीव) । अचेतनजड़-पुद्गल के महलरूप यह शरीर, उसमें कोई कार्य हुआ, चलना-बोलना -खाना आदि क्रिया हुई; अन्य चेतनतत्त्व उससे अत्यन्त दूर अर्थात् सर्वथा जुदा रहता है, वह कभी पुद्गल में जाता ही नहीं-पुद्गलरूप होता नहीं, तो भी अज्ञानी उसके ऊपर कलङ्क -आरोप लगाता है कि जड़ की क्रिया का कर्ता जीव है ! -उस कलङ्क लगानेवाले से ज्ञानी पूछते हैं कि-हे भाई! * क्या तूने जीव को जड़ की क्रिया करते हुए कभी देखा है?.... ना। * क्या तूने अतीन्द्रिय-अरूपी-चेतनमय जीवतत्त्व को पहचाना है ?.... ना। * क्या जीव के अन्दर कभी पुद्गल की कोई क्रिया तूने देखी है?.... ना। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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