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________________ www.vitragvani.com 134] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 पुण्य-पाप के सच्चे न्याय अनुसार कर्ता-कर्म के स्वरूप की सच्ची समझ जो सम्यग्ज्ञान के न्याय से सच्चे कारण-कार्य को नहीं जानता, और जैसे-तैसे इन्द्रियज्ञान के द्वारा ही कर्ता-कर्म की या कारणकार्य की मिथ्या कल्पना करता है, वह जीव, मिथ्या कल्पना से कैसी भयङ्कर भूल करता है? तथा सच्चा ज्ञान उसकी मिथ्या कल्पना का कैसा निराकरण कर देता है? यह आप इस लेख के दृष्टान्त तथा सिद्धान्त में देखेंगे। एक बादशाह था। उसके गाँव में एक सेठ रहता था, वह नास्तिक जैसा था, परलोक को या पुण्य-पाप को नहीं मानता था। उस सेठ के घर बालक का जन्म हुआ। बालक बहुत सुन्दर, एवं अत्यन्त कोमल शरीरवाला था। एक बार सेठ अपने पुत्र को लेकर उत्साह से बादशाह के पास गया। बादशाह ने बालक को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की परन्तु बालक का अत्यन्त कोमल रूप देखकर अचानक बादशाह की बुद्धि में परिवर्तन हो गया; मांसभक्षी बादशाह को उस बालक का माँस खाने की अभिलाषा हई। अत: सेठ से कहा-सेठजी! अभी मुझे क्षुधा लगी है और इस बालक को काटकर उसके माँस खाने की भावना हुई है, अतः तुम यह बालक दे दो! बादशाह की बात सुनते ही सेठ तो कम्पित हो उठे! अरे, यह क्या?- अरे! क्या इस इकलौते पुत्र को बादशाह खा जायेगा?नहीं, नहीं; यह तो बहुत बुरा होगा। तुरन्त ही उसने बादशाह से कहा-नहीं, जहाँपनाह! यह नहीं हो सकता; यह कार्य आपको शोभा नहीं देता। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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