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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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। दान एक राजमाता ने अपने पुत्र से कहा
बेटा ! तेरे सामने एक बड़े पर्वत जितना धन का ढेर रखा जाये तो तू उसे कितने दिन में दान कर देगा?
तब पुत्र ने माता को तुरन्त ही जवाब दिया
माँ! मैं तो एक मिनिट में ही वह सब दान दे दूँगा, परन्तु लेनेवाले उसे कितने दिन में ले जायेंगे, इसका मैं विश्वास नहीं दिला सकता।
दातार कितना महान है!
समस्त परिग्रह एक क्षण में छोड़ा जा सकता है... परन्तु उसका ग्रहण एक क्षण में नहीं होता। त्याग महान है। संसार का त्याग गिन-गिनकर क्या करना? एक साथ ही त्याग कर देना।
पानी बढ़े नाव में, घर में बढ़े दाम,
दोनों हाथ से उलेचीये, यही शयानो काम। नाव में पानी भरता हो और घर में धन बढ़ता हो तो उसे दोनों हाथों उलेचने लगना-यह सुज्ञ पुरुषों का कर्तव्य है।
लक्ष्मी एकत्रित करके भण्डार में भर रखना, वह उसका सदुपयोग नहीं है परन्तु उत्तम कार्यों में उसे खर्च कर देना ही उसका सदुपयोग है । जैसे जीवन का सदुपयोग स्वानुभूति है, वैसे लक्ष्मी का सदुपयोग सुपात्र दान है।.
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