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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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माता, बालक को मीठी नजर से देखती है; उसी प्रकार धर्मात्मा सभी जीवों को मीठी नजर से देखते हैं । उनको देखकर दूसरे जीव भयभीत हो जायें-ऐसी क्रूरता नहीं होती; उनका परिणाम ऐसा सौम्य होता है कि जिनका सङ्ग दूसरे जीवों को भी शान्ति प्राप्त कराता है। ____8. गुणग्राही : वे गुणों के ग्राहक होते हैं; सम्यक्त्वादि गुणों को देखकर उसकी प्रशंसा करते हैं; किसी में अल्प क्रोधादि दोष देखकर, उसके सम्यक्त्वादि गुणों के प्रति अनादर नहीं करते, परन्तु गुणों को देखकर उसका आदर करते हैं। कोई अपना अपमानादि करे तो भी उसके गुणों का अनादर नहीं करते, परन्तु ऐसा विचार करते हैं कि मेरा अपमान किया तो किया, फिर भी उसे
जैनधर्म के प्रति तो प्रेम-आदर है, वह जैनधर्म का भक्त है, देव -गुरु का आदर करनेवाला है; अत: मेरा साधर्मी है, ऐसे उसके गुणों का ग्रहण करते हैं। इस प्रकार गुण का ग्रहण करने से साधर्मी के प्रति द्वेषभाव नहीं आता, परन्तु प्रेम और वात्सल्यभाव बना रहता है।
9. गरिष्ट (सहनशील) : संसार में शुभाशुभकर्मों के योग से अनुकूलता-प्रतिकूलता तो आती ही है। कोई प्रतिकूलता आ जाये या अपमानादि हो, रोग हो, तब धैर्यपूर्वक सहन करते हैं और धर्म में दृढ़ता रखते हैं; प्रतिकूलता आने पर घबड़ाते नहीं, खेदखिन्न होकर आर्तध्यान नहीं करते, परन्तु सहनशीलता से वैराग्य को बढ़ाते हैं।
10. सर्वप्रियता : सभी जीवों के प्रति मधुर व्यवहार रखते हैं, कठोर व्यवहार नहीं रखते; साधर्मी के प्रेम के कारण सज्जनता के कारण तथा न्यायनीति और धार्मिकवृत्ति के कारण सज्जनों को तो
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