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[सम्यग्दर्शन : भाग-6
वह प्रिय लगता ही है, तथा कोई विरोधी हो तो उसके प्रति भी प्रेमपूर्ण व्यवहार से उसके दिल को भी जीत लेते हैं। कहीं पर भी क्लेश बढ़े, ऐसा कटुतापूर्ण व्यवहार नहीं करते। ___ 11. शिष्टपक्षी : सत्य और सदाचार का पक्ष करनेवाला होता है। लौकिक प्रयोजन के लिये, मान से या भय से सत्यधर्म को तथा न्याय-नीति को छोड़ता नहीं। जहाँ धर्म हो, जहाँ सत्य हो और जहाँ न्याय हो, उसका पक्ष करता है।
12. मिष्टवचनी : जिन से स्व-पर का हित होता हो—ऐसे मधुर वचन बोलते हैं। जिनके द्वारा स्वयं को कषाय हो अथवा दूसरे का दिल पीड़ित हो-ऐसे कठोर वचन नहीं बोलते । शान्ति से, मधुरता से, कोमलता से सत्य और हित की बात करते हैं। सत्य बात भी कठोरता से नहीं कहते। 'दो दिन के मेहमान, बोली बिगाड़े कौनसौ ?'
13. दीर्घविचारी : देश-काल का विचार करके, अपने परिणाम का, शक्ति का विचार करके और स्व-पर के हित का विचार करके योग्य प्रवृत्ति करते हैं। अन्य की देखादेखी बिना विचारे निष्प्रयोजन प्रवृत्ति में नहीं पड़ते। जिससे वर्तमान में तथा भविष्य में अपने को शान्ति रहे और धर्म की शोभा बढ़े-ऐसी प्रवृत्ति विचारपूर्वक करते हैं। ___ 14. विशेषज्ञ : संघ की स्थिति, देश-काल की स्थिति इत्यादि के जानकार होते हैं। धर्म में या गृह व्यवहार में कब कैसी परिस्थिति होगी, कब कैसी जरूर पड़ेगी-उसके जानकार होते हैं, और उनके योग्य उपाय करते हैं।
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