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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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॥ श्रावक के इक्कीस गुणों का वर्णन |
अध्यात्म-कवि पण्डित बनारसीदासजी ने नाटक समयसार के अन्त में चौदह गुणस्थान का वर्णन किया है; उसमें अणुव्रत स्वरूप पाँचवें गुणस्थान के वर्णन में श्रावक के 21 गुण बताये हैं। वे सर्व जिज्ञासुओं के लिये उपयोगी होने से यहाँ दे रहे हैं। सर्व मुमुक्षुओं को इन गुणों का स्वरूप विचारकर अपने में धारण करना चाहिए, जिससे जीवन शोभायमान होगा:
[सवैया ] लज्जावंत दयावंत प्रशांत प्रतीतवंत, परदोष को ढकैया पर उपगारी है। सौमदृष्टि गुनग्राही गरिष्ट सबको इष्ट, शिष्टपक्षी मिष्टवादी दीरघ विचारी है। विशेषज्ञ रसज्ञ कृतज्ञ तत्ज्ञ धरमज्ञ, न दीन न अभिमानी मध्य विवहारी है। सहज विनित पापक्रियासौं अतीत ऐसौ,
श्रावक पुनीत इकवीस गुनधारी है॥ 1. लज्जावन्त- कोई भी पापकार्य, अन्याय, अनीति इत्यादि में उसे लज्जा आती है कि अरे! मैं तो जैन, मैं जिनवरदेव का परम भक्त, मैं आत्मा का जिज्ञासु हूँ; अत: मुझे ऐसे पापकार्य शोभा नहीं देते।
2. दयावन्त- अरे, घोर दुःखमय यह संसार, उसमें जीव कैसे दुःखी हैं ! मेरे निमित्त से कोई जीव को दुःख न हो, किसी को दुःख
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