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[ सम्यग्दर्शन : भाग-6
न जाने, वह अपनी पर्याय से बाहर ऐसे परद्रव्य को तो कहाँ से जानेगा ? जो अन्धा अपने शरीर को नहीं देखता, वह दूसरे को कहाँ से देखेगा ? सम्यग्दृष्टि तो अपने सर्वज्ञस्वभावी आत्मा को इन्द्रियातीत मति - श्रुतज्ञान द्वारा प्रत्यक्ष करता है; पश्चात् उसकी विशेष भावनारूप एकाग्रता द्वारा शुद्धोपयोगी होकर, राग-द्वेष का क्षय करके, केवलज्ञानरूप परिणमित होता है । वह केवलज्ञान सम्पूर्ण ज्ञान -विशेषोंवाला परिपूर्ण है और केवलज्ञानी प्रभु ऐसे अनन्त विशेषरूप परिणमित सर्वज्ञस्वभावी आत्मा को केवलज्ञान द्वारा साक्षात् - प्रत्यक्ष जानते हैं ।
* भगवान महावीर ऐसे सर्वज्ञ हैं - ऐसे सर्वज्ञरूप से उनकी पहिचान ही सर्वज्ञ महावीर की सच्ची पहिचान है। ऐसी पहिचान करनेवाला जीव, आत्मा को जानकर महावीर के मार्ग से मोक्ष में जाता है ।
जय सर्वज्ञ महावीर
अहो वर्धमानदेव !
सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्ररूप मंगल मार्ग का इष्ट उपदेश प्रदान करके आपश्री ने परम उपकार किया है; उसे याद करके हम आपके निर्वाण का ढाई हजार वर्षीय महान उत्सव मना रहे हैं और आपके मंगल मार्ग में आ रहे हैं।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.