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________________ www.vitragvani.com 114] [ सम्यग्दर्शन : भाग - 6 भी गुण-गुणी भेद है, यह बीच में आने के अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग नहीं है, परन्तु साधक जीव, विकल्प और चैतन्य के स्वाद को भिन्न पाड़कर विकल्प की भूमिका को उल्लंघन कर जाता है और चैतन्य की अनुभूति करके निर्विकल्प मोक्षमार्ग में आ जाता है। अहा! शुद्ध वस्तु का अनुभव बताकर अमृतचन्द्राचार्यदेव ने अमृत बहाया है। कलश में स्वानुभव का अमृत भरा है । जैसे तीर्थङ्करदेव के जन्म कल्याणक में 1008 कलशों से इन्द्र अभिषेक करते हैं; वैसे अमृतचन्द्राचार्यदेव ने यहाँ 278 कलशों में अमृत भर-भरकर इस चैतन्य भगवान आत्मा का अभिषेक किया है। वाह ! स्वानुभव के अमृतरस से आत्मा को नहलाया है । अहो जीवों ! महाभाग्य से वीरशासन प्राप्त करके, आत्मा को शुद्धस्वरूप से अनुभव में लेकर अनुभवरस का पान करो। • ار जिनमार्ग अत्यन्त सरल है सर्वज्ञ जिनेन्द्र के मार्ग का अनुसरण करने से जीव का उद्धार होता है और वह जन्म-मरण से रहित अमर पद को प्राप्त करता है तथा यह कोई क्लिष्ट मार्ग नहीं परन्तु स्वाभाविक होने के कारण विवेकी पुरुषों के लिए अत्यन्त सरल है । हे जीव ! अन्तरात्मा द्वारा इस उत्तम आनन्दकारी मार्ग का ग्रहण करने से तू सन्मार्गी हो । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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