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सम्यग्दर्शन : भाग -6 ]
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I
से साधक केवलज्ञान को प्राप्त करेगा । बीच में विकल्प आयेंगे, उनके द्वारा कहीं केवलज्ञान नहीं होगा; मोक्ष का मार्ग तो शूरवीरों का है; विकल्प में रुक जाये-ऐसे कायर जीव, इस सुन्दर मार्ग को नहीं साध सकते ।
एकरूप जीववस्तु को अनेक भेद से लक्ष्य में लेने पर तो विकलप होते हैं; उसमें वस्तु का अनुभव नहीं; इसलिए वे झूठे हैं। उन सर्व विकल्पों को झूठा करने से अर्थात् उन्हें अभूतार्थ समझकर उनका लक्ष्य छोड़ने से निर्विकल्प उपयोग में वस्तु का जो स्वाद आवे, उसका नाम अनुभव है । इस कलश के आधार से पण्डित बनारसीदासजी, समयसार नाटक में कहते हैं कि -
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वस्तु विचारत ध्यावते मन पावे विश्राम, रसस्वादत सुख ऊपजे अनुभव याको नाम ।
वस्तु को ध्यान में लेकर अनुभव करने से मन के विकल्प विराम को प्राप्त हो जाते हैं और चैतन्य के अतीन्द्रियरस के अनुभव से परम सुख उत्पन्न होता है - ऐसी दशा का नाम अनुभव है। ऐसा अनुभव, वह मोक्ष का मार्ग है । उस अनुभव में प्रमाण के, नय के, अथवा निक्षेप के विकल्प नहीं हैं; उसमें तो अकेला शान्त चैतन्यरस गम्भीररूप से वेदन में आता है।
जीव अनादि से अज्ञानी था, वह अपने शुद्धस्वरूप को नहीं जानता था; वह जब अपने शुद्धस्वरूप को पहचानने के लिये तैयार हुआ, तब गुण-गुणी भेद द्वारा वस्तुस्वरूप को साधता है, अर्थात् वस्तुस्वरूप का निर्णय करने जाये, वहाँ बीच में गुण - गुणी भेद आये बिना नहीं रहता।‘मैं ज्ञानस्वरूप हूँ' - इत्यादि विचारधारा में
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