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________________ www.vitragvani.com 106] [सम्यग्दर्शन : भाग-6 __ अहा ! अत्यन्त सुन्दर चैतन्यवस्तु तो स्वानुभव से ही शोभती है; वह किसी विकल्प से नहीं शोभती। चैतन्य का स्वानुभव परसहाय से निरपेक्ष है। विकल्प की सहायता लेने जाये तो शुद्ध आत्मा स्वानुभव में नहीं आता। शुद्ध आत्मा कहता है कि जहाँ मैं, वहाँ विकल्प नहीं । स्वानुभव, वह प्रत्यक्ष ज्ञानरूप है और सम्यक्त्व उसके साथ अविनाभावी है। अहा! ऐसी स्वानुभव की बात सुनने पर भी मुमुक्षु को पहले तो उसका उत्साह जगे... उसकी महिमा आवे और विकल्प की महिमा उड जाये - इसलिए उसके वीर्य का उल्लास विकल्प से हटकर स्वानुभव की ओर झुके, परन्तु प्रथम जिसे स्वानुभव की बात रुचे भी नहीं, उसका पुरुषार्थ, स्वानुभव की ओर कब ढलेगा? ___ अरे! भगवान तीर्थङ्करदेव की सभा में ऐसी स्वानुभव की बात इन्द्र भी उत्साह से सुनते हैं और साथ में सिंह बाघ जैसे कोई तिर्यञ्च भी यह बात सुनकर, अन्तर में उतरकर स्वानुभव कर लेते हैं। देखो न ! महावीर भगवान के जीव को सिंहपर्याय में मुनियों ने सम्यक्त्व का उपाय सुनाया और कहा कि 'अरे जीव! तू भरतक्षेत्र का इस चौबीसी का चरम तीर्थङ्कर होनेवाला है-ऐसा भगवान की वाणी में हमने सुना है, और यह क्या? तू ऐसे क्रूर भाव में पड़ा है ? अरे, तेरा निजपद सम्हाल! और सम्यक्त्व को ग्रहण कर!' ___ मुनियों के वचन सुनते ही सिंह का आत्मा जाग उठा... अरे! मुझे देखकर मनुष्य तो भगते हैं, उसके बदले ये तो ऊपर से नीचे उतरकर मेरे सामने खड़े हैं और मुझे उपदेश देकर निजपद बताते हैं। इस प्रकार समझकर, टकटकी लगाकर मुनियों के सन्मुख Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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