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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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की आकुलतारूप ज़हर नहीं मिलता। विकल्परहित आनन्द, रागरहित आनन्द अर्थात् शुद्ध आत्मा का आनन्द क्या चीज़ हैइसकी खबर स्वानुभूति में पड़ती है। सम्यक्त्व के साथ अविनाभूत ऐसे इस परम आनन्द का स्वाद सम्यग्दृष्टि को ही होता है; मिथ्यादृष्टि को उस आनन्द की गन्ध भी नहीं होती। वह तो विकल्प के ही आनन्द में रच रहा है। विकल्प शोभावाली वस्तु नहीं है; शोभावाली वस्तु तो चैतन्य का अतीन्द्रिय आनन्द है। उस आनन्द के समीप विकल्प शोभा नहीं देता। जैसे अत्यन्त सुन्दर वस्तु के समीप खराब वस्तु शोभा नहीं देती; जैसे चक्रवर्ती के सिंहासन में साथ में भिखारी शोभा नहीं देता; उसी प्रकार चैतन्य के स्वानुभव का अत्यन्त सुन्दर आनन्द, कि जो आनन्द, चक्रवर्ती के या इन्द्र के वैभव में भी नहीं है; उस आनन्द के धाम के साथ अशुचिरूप विकल्प शोभा नहीं देता, अर्थात् स्वानुभव में वह विकल्प होता ही नहीं। ___ अरे! अनुभव के साथ जो विकल्प शोभा नहीं देता, उस विकल्प का अवलम्बन लेकर अनुभव करना चाहे, उसे तो स्वानुभव के स्वरूप की ही खबर नहीं है। यह अनुभव पर की सहायता से रहित है, इसमें विकल्प की भी सहायता नहीं है। अनुभवदशा के समय वचन और विकल्प सहज बन्द हो जाते हैं... उपयोग बाहर से खिंचकर अन्तर में झुक गया है और आनन्द के अनुभव में ही मग्न है।
आनन्दस्वभाव में उपयोग की एकता और विकल्प से उपयोग की पृथक्ता का नाम निर्विकल्पता है। ऐसी निर्विकल्पता में अतीन्द्रिय आनन्द का भोग होता है। ऐसे अनुभव के समय विकल्प नहीं होता; इसलिए कहा कि वहाँ विकल्प शोभता ही नहीं।
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