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________________ www.vitragvani.com 66] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 ज्ञान-चारित्र प्रगट नहीं करते और पराश्रित शुभभावरूप व्यवहार श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र को मोक्ष का कारण समझकर सेवन करते हैं, उन्हें कदापि मोक्षमार्ग नहीं मिलता। भाई! तू स्वद्रव्य को जानकर उसका आश्रय कर, तो ही मोक्षमार्ग प्रगट होगा। स्वद्रव्य और परद्रव्य की भिन्नता को पहचानकर स्वद्रव्य के आश्रय से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग प्रगट होता है। देखो, ऐसी बात श्रीमद् राजचन्द्रजी ने छोटी उम्र में (17 वर्ष की आयु से पहले) ही लिखी है। उन्हें सात वर्ष की उम्र में तो जातिस्मरण में पूर्वभव का ज्ञान हुआ था; आत्मा इस भव से पहले कहाँ था-इसका ज्ञान हो सकता है। अपने यहाँ राजुल बहिन को भी, ढाई वर्ष की उम्र में पूर्वभव में जूनागढ़ में गीता थी, उसका जातिस्मरणज्ञान हुआ है। इससे भी विशेष चार भव का ज्ञान चम्पाबेन को है; उनकी बात गहरी है। आत्मा की अपार सामर्थ्य है, उसे पहचानकर उसमें रमणता करने से अपूर्व आनन्द का अनुभव होता है। श्रीमद् राजचन्द्रजी ने सत्रह वर्ष की उम्र से पहले जो 125 बोध वचन लिखे हैं, उनमें स्वद्रव्य का आश्रय करने और परद्रव्य का आश्रय छोड़ने के दस बोल बहुत सरस हैं। निश्चय का आश्रय करो और व्यवहार का आश्रय छोड़ोऐसा जो समयसार का आशय है, वह आशय श्रीमद् राजचन्द्रजी ने नीचे के दस बोल में बतलाया है। उनमें प्रथम तो कहते हैं कि - स्वद्रव्य और अन्य द्रव्य को भिन्न-भिन्न देखो। इस प्रकार दोनों को भिन्न-भिन्न जानकर क्या करना? इसके लिए दस बोल में सरस स्पष्टीकरण लिखा है Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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