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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
भगवान के आत्मा में हैं, उतने ही गुण इस आत्मा में हैं। अरिहन्त के और आत्मा के द्रव्य-गुण में अन्तर नहीं है, पर्याय में जो अन्तर है, वह द्रव्य के अवलम्बन से मिट जाता है। ____ अरिहन्त जैसे होने का उपाय क्या? अरिहन्त भगवान जैसा ही अपना द्रव्य-गुण है-ऐसा पहिचान कर, उसका अवलम्बन करना, वह अरिहन्त जैसा होने का उपाय है। ___ जितने अरिहन्त हुए हैं, उन सब अरिहन्त भगवन्तों ने अपने द्रव्य का अवलम्बन करके ही अरिहन्तदशा प्रगट की है तथा सर्व जीवों के लिये स्वयं के द्रव्य का अवलम्बन करना ही सम्यग्दर्शन और अरिहन्तपद का उपाय है।
IT इस आत्मा का स्वभाव, अरिहन्त भगवान जैसा किस प्रकार है ? यह जाने बिना दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजा या शास्त्र-अभ्यास इत्यादि चाहे जितना करे, तथापि किसी प्रकार धर्म नहीं होता। धर्म करने के लिये शुरुआत का कर्तव्य यह है कि अरिहन्त भगवान का और उनके जैसे अपने आत्मा का निर्णय करना।
Is अरिहन्त भगवान के स्वभाव में और आत्मा के स्वभाव में निश्चय से कुछ भी अन्तर माने तो वह जीव पामर है-मिथ्यादृष्टि है, उसे धर्म नहीं होता। ___ अरिहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय को लक्ष्य में लेने से अपने परमार्थस्वरूप का ख्याल आता है। भगवान के द्रव्य-गुण पूर्ण हैं और उनकी पर्याय सम्पूर्ण ज्ञानमय हैऐसा निर्णय करने से मेरे द्रव्य-गुण तो पूर्ण हैं और पर्याय
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