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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [55 II अरिहन्त भगवान को पूर्व में अज्ञानदशा थी, पश्चात् ज्ञानदशा प्रगट हुई; इन अज्ञान और ज्ञान दोनों दशाओं में अरिहन्त को जो टिक रहा है, वह आत्मद्रव्य है। जो आत्मा पहले अज्ञानदशा में था, वही अभी ज्ञानदशा में है-ऐसे पहले-पश्चात् की जोड़रूप जो धारावाही पदार्थ, वह द्रव्य है। पर्याय पहले-पश्चात् की जोड़रूप नहीं परन्तु पृथक्-पृथक् है। पहली अवस्था, वह दूसरी नहीं; दूसरी अवस्था, वह तीसरी नहीं-इस प्रकार अवस्था में परस्पर पृथक्ता है और द्रव्य तो जो पहले समय में था, वही दूसरे समय में है; दूसरे समय में था, वही तीसरे समय में है-ऐसे द्रव्य में धारावाहीपना है। इस प्रकार पहिचाने तो अकेली पर्यायबुद्धि मिट जाये और स्वसन्मुखता हो जाये। ____NS किस अवस्था के समय द्रव्यसामर्थ्य नहीं है ? सभी अवस्था के समय द्रव्यसामर्थ्य ऐसा की ऐसा एकरूप है। जितना अरिहन्त भगवान का द्रव्यसामर्थ्य है, उतना ही अपना द्रव्यसामर्थ्य है-ऐसी पहिचान करने से ऐसी प्रतीति होती है कि अभी मुझे अपूर्ण दशा होने पर भी, अरिहन्त भगवान जैसी पूर्ण दशा भी मुझमें से ही प्रगट होनी है और उस पूर्णदशा में भी मैं ही कायम रहनेवाला हूँ। ___ द्रव्य का विशेषण, वह गुण है; जैसे कि सोना कैसा? कि सोना पीला, सोना भारी, सोना चिकना; उसी प्रकार आत्मद्रव्य कैसा? आत्मा ज्ञानस्वरूप, आत्मा दर्शनस्वरूप, आत्मा चारित्रस्वरूप; इस प्रकार ज्ञानादि विशेषण आत्मद्रव्य को लागू पड़ते हैं; इसलिए वे आत्मा के गुण हैं। जितने गुण अरिहन्त Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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