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________________ www.vitragvani.com 54] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 माने, उसने वास्तव में अरिहन्त भगवान को भी नहीं पहचाना और वह अरिहन्त भगवान का सच्चा भक्त नहीं है। ___ जिसने अरिहन्त भगवान के स्वरूप को जाना और उसके द्वारा अपने आत्मस्वरूप का निर्णय किया, वह जीव सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा है, वही सच्चा जैन है। वह जिनेश्वरदेव का लघुनन्दन है। प्रथम, जिनेन्द्रदेव जैसा अपना स्वभाव है-ऐसा निर्णय करना, वह जैनपना है और फिर स्वभाव के अवलम्बन से पुरुषार्थ द्वारा वैसी पूर्णदशा प्रगट करना, वह जिनपना है। अरिहन्त को पहचाने बिना और उनके जैसे अपने निजस्वभाव को जाने बिना सच्चा जैनपना नहीं हो सकता, अर्थात् धर्म नहीं होता। IT अहो ! अरिहन्त भगवान अपने स्वभाव से ही स्वयं सुखी है; इन्द्रिय-विषयों के बिना ही उनका आत्मा, सुखरूप परिणम रहा है, इसलिए सुख, वह आत्मा का ही स्वरूप है। स्वभाव से ही स्वयमेव सुखरूप हुए अरिहन्त भगवन्तों को आहार, पानी, दवा या वस्त्र इत्यादि की आवश्यकता नहीं पड़ती; इस प्रकार अरिहन्त के आत्मा को पहचान कर, उसके साथ अपने आत्मा का मिलान करे तो अपना स्वतन्त्रस्वभाव प्रतीति में आवे कि अहो! किसी बाह्य संयोग में मेरा सुख नहीं; सुख तो मेरा अपना स्वभाव है। अकेला मेरा स्वभाव ही सुख का कारण है-ऐसी समझ होने से सम्यग्दर्शन होता है। अरिहन्त भगवान को पहिचानने से अतीन्द्रियसुख की पहिचान होती है और इन्द्रिय विषयों में से सुखबुद्धि मिट जाती है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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