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________________ 44] [ सम्यग्दर्शन : भाग-4 है, क्योंकि सुशील जो भावलिङ्गी, उसके आश्रय से शील अर्थात् दर्शन - ज्ञान - चारित्र वृद्धि को पाते हैं । (भावार्थ - जिससे सत्यार्थ धर्म प्रवर्ते, वह तो एक भी श्रेष्ठ है परन्तु जिनसे सत्यार्थ धर्म नष्ट हो और विपरीत मार्ग प्रवर्ते, ऐसे लाखों-करोड़ों भी श्रेष्ठ नहीं है ।) ( भगवती आराधना, गाथा 359 ) www.vitragvani.com (10) गुणीजनों के आश्रय से गुण की पुष्टि कोई ऐसा कहे कि सत्यार्थ संयमी तो हमारा आदर करते नहीं और पार्श्वस्थ (भ्रष्ट) मुनि बहुत आदर करते हैं, प्रीति करते हैं ! तो उन्हें कहते हैं कि भाई ! दुर्जन द्वारा की जानेवाली जो पूजा आदर, उसकी अपेक्षा संयमीजनों द्वारा किया जानेवाला अपमान भी श्रेष्ठ है, क्योंकि दुर्जन की संगति तो आत्मा के ज्ञान-दर्शन का नाश करती है और संयमियों की संगति, आत्मा के ज्ञान-दर्शनादि स्वभाव को प्रगट करती है, उज्ज्वल करती है । ( भगवती आराधना, गाथा 360 ) इसलिए श्रेष्ठ गुणधारक सन्तजनों का ही आश्रय करो - ऐसा उपदेश है । ' आत्महितकार सत्संग की जय हो !' • - आत्मा का स्वानुभव होने पर समकिती जीव, केवलज्ञानी जितना ही नि:शंक जानता है कि मैं आत्मा का आराधक हुआ हूँ और प्रभु के मार्ग में सम्मिलित हूँ। स्वानुभव हुआ और भवकटी हो गयी; अब हमारे इस भवभ्रमण में भटकना नहीं होगा। इस प्रकार अन्दर से आत्मा स्वयं ही स्वानुभव की झंकार करता हुआ जबाव देता है। Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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