SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 42] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 (4) गुणीजनों की छाया में बसना प्रवचनसार में गुणीजनों के सत्संग का उपदेश देते हुए श्रमण को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि यदि श्रमण, दुःख से परिमुक्त होना चाहता हो तो वह समानगुणवाले श्रमण के संग में अथवा अधिकगुणवाले श्रमण के संघ में नित्य बसो। समानगुणवाले के संग से गुण की रक्षा होती है और अधिकगुणवाले के संग से गुण की वृद्धि होती है। (यह बात सभी मुमुक्षु जीवों को लागू पड़ती है)। (5) सत्पुरुष की प्रसन्नता श्रीमद् राजचन्द्रजी, जगत की अपेक्षा सत्पुरुष की विशेष महिमा बतलाते हुए कहते हैं देव-देवी की तुषमानता को क्या करूँगा? जगत की तुषमानता को क्या करूँगा? तुषमानता सत्पुरुष की इच्छो। (6) आत्मज्ञ सन्तों की उपासना जीव ने आत्मा का शुद्ध एकत्वस्वरूप कभी जाना नहीं और उस एकत्वस्वरूप को अनुभव करनेवाले आत्मज्ञ सन्त की उपासना कभी नहीं की। यदि आत्मज्ञ पुरुष को पहचानकर उसकी उपासना करे तो स्वयं को भी एकत्वस्वरूप की अनुभूति होती ही है। एकत्वस्वभाव के अतीन्द्रिय आनन्द के प्रचुर स्वसंवेदनरूप आत्मवैभव जिन्हें प्रगट हुआ है-ऐसे सन्त, आत्मा का एकत्वस्वरूप दिखलाते हैं, उसे पहचानने से आत्मवैभव प्रगट Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy