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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [35 है। में लिया, उस ज्ञान में ऐसी सामर्थ्य है कि अपने आत्मा में से विकार और अपूर्णता का निषेध करके स्वभाव-सामर्थ्य को स्वीकारता है और मोह का क्षय करता है। IS जो जीव, अरिहन्त भगवान के आत्मा को भलीभाँति जानता है, वह जीव अपने चैतन्य-सामर्थ्य के सन्मुख होकर सम्यग्दर्शन प्रगट करता है, अर्थात् अरिहन्त भगवान को जाननेवाला जीव, अरिहन्त का लघुनन्दन होता है। ___ धर्मी जीव ने अपने हृदय में अरिहन्त भगवान को स्थापित किया है, उसके अन्तर में केवलज्ञान की महिमा उत्कीर्ण हो गयी है और ऐसा परम महिमावन्त केवलज्ञान प्रगट होने की सामर्थ्य मेरे आत्मा में भरी है-ऐसी उसे स्वसन्मुख प्रतीति वर्तती है। IS केवलज्ञान का यथार्थ निर्णय करने की सामर्थ्य, शुभविकल्प में नहीं परन्तु ज्ञान में ही वह सामर्थ्य है। केवलज्ञान का यथार्थ निर्णय करनेवाला ज्ञान, अपने स्वभावसन्मुख हो जाता है। IS जो जीव, अरिहन्त भगवान के केवलज्ञान का निर्णय करे, वह जीव, राग को आत्मा का स्वरूप नहीं मानता, अर्थात् राग से धर्म होना नहीं मानता, क्योंकि केवलज्ञानी को राग नहीं है और जैसा केवलज्ञानी का स्वरूप है, वैसा ही अपना परमार्थस्वरूप है। ___ जो जीव मात्र अपनी कुलपरम्परा से ही अरिहन्तदेव को महान मानता है परन्तु अरिहन्त भगवान के जीव का क्या स्वरूप है ?-वह नहीं पहचानता, उसे मिथ्यात्व का अभाव नहीं होता और धर्म नहीं होता। इसलिए अरिहन्त भगवान के Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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