SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 34] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 बात जम जाये, ऐसा नहीं है। यह तो मुझे करनेयोग्य हैऐसे धीर होकर इस बात को पकड़ने योग्य है। ___ अरिहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय का निर्णय, ज्ञान के अन्तर्मुखी पुरुषार्थ के द्वारा होता है और उसका निर्णय करने से आत्मा के वास्तविक स्वरूप की पहचान होकर सम्यग्दर्शन प्रगट होता है और मोह का क्षय होता है; इसलिए हे जीवो! पुरुषार्थ द्वारा अरिहन्त भगवान को पहचानो। ____ जिस जीव ने अरिहन्त भगवान की परिपूर्ण सामर्थ्य को अपने ज्ञान में लिया, उसने अपने आत्मा में भी वैसी परिपूर्ण सामर्थ्य का स्वीकार किया और उससे कम का या विकार का निषेध किया। ___ अरिहन्त भगवान में और इस आत्मा में निश्चय से अन्तर नहीं है, इसलिए जिसने अरिहन्त के आत्मा का वास्तविकस्वरूप जाना, उसे ऐसा लगता है कि अहो! मेरे आत्मा का वास्तविकस्वरूप भी ऐसा ही है; इसके अतिरिक्त दूसरे विपरीत भाव मेरा स्वरूप नहीं है। ऐसा जानकर अपने आत्मा की ओर ढलने से उस जीव के मोह का नाश हो जाता है। ____ अरिहन्त भगवान को वास्तव में जाना कब कहलाये? अरिहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय के साथ अपने आत्मा को मिलान कर, जैसा अरिहन्त का स्वभाव, वैसा ही मेरा स्वभाव-ऐसा यदि निर्णय करे, तो अरिहन्त भगवान को वास्तव में जाना कहा जाता है और इस प्रकार अरिहन्त भगवान को जाने, उसे सम्यग्दर्शन हुए बिना नहीं रहता। Is जिसने अरिहन्त भगवान के द्रव्य-गुण-पर्याय को लक्ष्य Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy