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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
आत्मा का वास्तविक स्वरूप क्या है? वह पहचानना चाहिए। अरिहन्त भगवान के आत्मा का वास्तविक स्वरूप पहचाने, वह मिथ्यादृष्टि रहता ही नहीं।
जो जानता अरहन्त को गुण-द्रव्य अरु पर्ययेपने। वह जीव जाने आत्म को उस मोहक्षय पावे अरे॥ I जिसे मोह का क्षय करना हो, उसे क्या करना? अरिहन्त भगवान का आत्मा कैसा है, उनके गुणों की सामर्थ्य कैसी है और उनकी केवलज्ञानादि पर्याय का क्या स्वरूप है?– यह निर्णय करना; यह निर्णय करने से अपने आत्मा का वास्तविक स्वरूप भी वैसा ही परिपूर्ण है-ऐसी सम्यक् प्रतीति होती है और मोह का नाश हो जाता है। ___ यहाँ अरिहन्त भगवान इस आत्मा के ध्येयरूप / आदर्शरूप हैं। जैसे दर्पण में देखने से अपनी मुद्रा दिखती है, वैसे अरिहन्त भगवान इस आत्मा के दर्पण समान हैं; अरिहन्त भगवान का स्वरूप पहचानने से आत्मा का परिपूर्णस्वरूप कैसा है, वह पहचाना जाता है। अरिहन्त भगवान को जो केवलज्ञानादि प्रगट हुए हैं, वह प्रगट होने की मेरे आत्मा में सामर्थ्य है और जो रागादि भाव, अरिहन्त भगवान के आत्मा में से टल गये हैं, वे आत्मा का वास्तविकस्वरूप नहीं है। इस प्रकार अरिहन्त भगवान को पहचानने से अपने स्वभावसामर्थ्य की प्रतीति होती है और विकारी भावों से भेदज्ञान होता है।
IIT आचार्यदेव कहते हैं कि भाई! हमें तुझे तेरा शुद्धस्वरूप बतलाना है; विकार या अपूर्णता तेरा वास्तविक स्वरूप नहीं है; तेरा
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