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________________ www.vitragvani.com 18] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 है, उसका अनुभव करने के लिये उद्यमी हो, मोह की मूर्छा में अब एक क्षण भी न गँवा। चैतन्य का जीवन प्राप्त करने के लिये एक बार तो सम्पूर्ण जगत् से पृथक् पड़कर अन्तर में तेरे चैतन्यविलास को देख - ऐसा करने से तेरा अनादि का मोह छूटकर तुझे अपूर्व कल्याण की प्राप्ति होगी। हे भाई! हे वत्स! अब तुझे इस जीवन में यही करनेयोग्य है। तुझे कठिन लगता हो और घबराहट होती हो तो हम तुझे कहते हैं कि हे भाई! यह कठिन नहीं, परन्तु प्रयत्न से सरल है; मात्र एक बार तू जगत के समस्त परद्रव्यों से भिन्न पड़कर उनका पड़ोसी हो जा, और जगत् से भिन्न चैतन्यतत्त्व को देखने के लिये कौतूहल करके अन्तर में उसका उद्यम कर - ऐसा करने से तुझे अन्तर में आनन्दसहित चैतन्य का अनुभव होगा और तेरी उलझन मिट जायेगी। (4) पर में कुछ नयी बात आवे, वहाँ उसे जानने का कैसा कौतूहल करता है! तो अनादि काल से नहीं जाना हुआ ऐसा परम महिमावन्त चैतन्यतत्त्व, उसे जानने के लिये कौतूहल क्यों नहीं करता? आत्मा कैसा है? – यह जानने का एक बार तो कौतूहल कर। जगत् की दरकार छोड़कर आत्मा को जानने की दरकार कर। अरे जीव! जगत् का नया-नया जानने में उत्साह और चैतन्यतत्त्व को जानने में बेदरकारी-यह तुझे नहीं शोभता। इसलिए चैतन्य को जानने की विस्मयता ला और दुनिया की दरकार छोड़। दुनिया तुझे मूर्ख कहेगी, अनेक प्रकार की प्रतिकूलता करेगी, परन्तु उन सबकी Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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