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________________ 16 ] www.vitragvani.com [ सम्यग्दर्शन : भाग - 4 आत्मकल्याण की अद्भुत प्रेरणा आत्मकल्याण के लिये लालायित जिज्ञासुओं को यह लेख पढ़ने से ऐसा लगेगा कि अहो ! महा उपकारी सन्तों के अतिरिक्त आत्मा के कल्याण की ऐसी वात्सल्य भरी अद्भुत प्रेरणा कौन दे ? अरे जीव! चैतन्य के अनुभवरहित जीवन तुझे कैसे रुचता है ? हे जीव ! अब तो तू जागृत हो... जागृत होकर हमने तुझे तेरा चैतन्यस्वरूप बतलाया है, उसका अनुभव करने के लिये उद्यमी हो, मोह की मूर्च्छा में अब एक क्षण भी न गँवा । चैतन्य का जीवन प्राप्त करने के लिये एक बार तो सम्पूर्ण जगत् से पृथक् पड़कर अन्तर में तेरे चैतन्यविलास को देख ! ऐसा करने से तुझे सर्व कल्याण की प्राप्ति होगी । हे भाई! हे वत्स ! अब तुझे इस जीवन में यही करने योग्य है... तेरे आत्मकार्य को तू शीघ्रता से कर । (1) जिस जीव को चैतन्यस्वरूप आत्मा का पता नहीं और अज्ञानभाव से जड़ के साथ तथा विकार के साथ एकमेकपना मान रहा है, उसे आचार्यदेव ने समझाया कि हे भाई! तेरा आत्मा तो सदा ही चैतन्यस्वरूप है; तेरा चैतन्यस्वरूप आत्मा जड़ के साथ कभी एकमेक नहीं हो गया है, इसलिए हे जीव ! अब तू जड़ के साथ एकमेकपने की मान्यता को छोड़ और तेरे चैतन्यस्वरूप आत्मा को देख। जड़ से भिन्न तेरा चैतन्यतत्त्व हमने तुझे बतलाया है । उसे जानकर अब तू प्रसन्न हो... सावधान हो । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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