________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
* चैतन्य हीरा से भरपूर विशाल पहाड़ * ___ आत्मा तो चैतन्य हीरों का महापर्वत है, उसे खोदने से उसमें से तो सम्यग्दर्शन, और केवलज्ञानादि हीरे निकलते हैं, उसमें से रागादि नहीं निकलते – ऐसे चैतन्य हीरे का पहाड़ खुला करके सन्त तुझे बतलाते हैं। भाई! तुझमें भरी हुई इस चैतन्य हीरे की खान को जरा खोलकर देख तो सही! अहो! आत्मा तो अनन्त गुण के चैतन्य हीरों से भरा हुआ महान पर्वत है, उसे खोलकर देखने से उसमें अकेले केवलज्ञानादि हीरे ही भरे हैं। ऐसे आत्मा को लक्ष्य में तो लो! उसका थोड़ा-सा भाग खुला करके नमूना बतलाया तो ऐसे अपने सम्पूर्ण आत्मा को लक्ष्य में लेकर उसकी परम महिमा करो।
अपना या पर का आत्मा, इन्द्रियों से ज्ञात नहीं हो सकता। अपने आत्मा को जिसने स्वसंवेदन से प्रत्यक्ष किया है, वही दूसरे आत्मा का सच्चा अनुमान कर सकता है। जिसने अपने आत्मा को अनुभव में नहीं लिया, वह दूसरे धर्मात्माओं को भी नहीं पहचान सकता। प्रत्यक्षपूर्वक का अनुमान ही सच्चा होता है; प्रत्यक्ष के बिना अकेला अनुमान सच्चा नहीं है।
स्वसन्मुख होकर आत्मा को प्रत्यक्ष किये बिना जीव ने बाहर का ज्ञान अनन्त बार किया और उसमें सन्तोष मान लिया। अरे! आत्मा की प्रत्यक्षता के बिना का ज्ञान, वह वास्तव में ज्ञान ही नहीं है; इसलिए जहाँ तक मेरा आत्मा मुझे प्रत्यक्ष नहीं होता, तब तक मैंने वास्तव में कुछ जाना ही नहीं। इस प्रकार जब तक जीव को अपना अज्ञानपना भासित नहीं होता और दूसरे परलक्ष्यी ज्ञान में
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.