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________________ www.vitragvani.com 182] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 देते-देते हस्तिनापुर में आए। अकम्पन मुनिराज को देखकर बलि मन्त्री भयभीत हो उठा। उसे डर लगा कि इन मुनियों के द्वारा यदि हमारा उज्जैन का पाप प्रगट हो जाएगा, तो यहाँ से भी राजा हमें अपमानित करके निकाल देगा। क्रोधवश अपने वैर का बदला लेने के लिए वे मन्त्री विचार करने लगे। ___ अन्त में उन पापी जीवों ने सब मुनियों को जीवित ही जला देने की एक दुष्ट योजना बनायी। राजा के पास जो वचन माँगना बाकी था, वह उन्होंने माँगा और कहा – हे महाराज! हमें एक महान यज्ञ करना है, इसलिए हमें सात दिन के लिए राज्य दीजिए। अपने वचन का पालन करने के लिए राजा ने उन मन्त्रियों को सात दिन के लिए राज्य सौंप दिया और स्वयं राजमहल में जाकर रहने लगे। ___ बस! राज्य हाथ में आते ही उन दुष्ट मन्त्रियों ने 'नरबलि यज्ञ' करने की घोषणा की... और जहाँ मुनि विराजमान थे, उनके चारों ओर हिंसा के लिए पशु, दुर्गन्धमय हड्डियाँ, माँस, चमड़े के ढेर लगा दिए और उन्हें प्रज्ज्वलित करके बड़ा कष्टप्रद वातावरण बना दिया। मुनियों के चारों ओर अग्नि की लपटें उठने लगीं और इस प्रकार मुनियों पर घोर उपसर्ग आ पड़ा। ...परन्तु मोक्ष के साधक वीतरागी मुनि! अग्नि के बीच भी शान्ति से आत्मा के वीतरागी अमृतरस का पान कर रहे थे। बाहर भले अग्नि जल रही थी, परन्तु उन्होंने अन्तर में रञ्चमात्र भी क्रोधाग्नि प्रगट न होने दी। अग्नि की लपटें उनके समीप चली आ रही थी; लोगों में चारों ओर हाहाकार मच गया। हस्तिनापुर के Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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