________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
[181
अपमान तथा क्रोध से भरे हुए वे पापी मन्त्री रात्रि के समय मुनि को मारने गये। ध्यान में लीन मुनिराज पर तलवार उठाकर जहाँ मारने को उद्यत हुए कि वहाँ अचानक उनके हाथ जहाँ के तहाँ रह गए। अरे! प्रकृति भी ऐसी हिंसा नहीं देख सकी। तलवार उठाया हुआ हाथ ज्यों का त्यों रह गया और उनके पैर जमीन से चिपक गए।
प्रात:काल लोगों ने यह दृश्य देखा। जब राजा को मन्त्रियों की दुष्टता की खबर पड़ी, तब राजा ने उन्हें गधेपर बैठाकर नगर से बाहर निकाल दिया। युद्ध-कला में प्रवीण बलि आदि मन्त्री घूमते -फिरते हस्तिानपुर पहुँचे और वहाँ राजा के मन्त्री बन गए। ___ हस्तिनापुर नगरी भगवान शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ तथा अरनाथ इन तीर्थ तीर्थङ्करों की जन्मभूमि है। यह घटना जब घटित हुयी, उस समय हस्तिनापुर में चक्रवर्ती के पुत्र पद्मराजा राज्य करते थे। उनके भाई मुनि हो गए थे, उनका नाम विष्णुकुमार था। वे आत्म के ज्ञान-ध्यान में मग्न रहते थे। उन्हें अनेक ऋद्धियाँ प्रगट हो गयी थीं, परन्तु ऋद्धियों के प्रति उनका लक्ष्य नहीं था। उनका लक्ष्य तो केवलज्ञानलब्धि साधने पर केन्द्रित था।
सिंहरथ नाम का एक राजा, हस्तिनापुर के राजा का शत्रु था और बहुत समय से परेशान करता था। पद्मराजा उसे जीत नहीं पाते थे। अन्त में बलि मन्त्रि ने युक्तिपूर्वक उसे जीत लिया। इससे प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें वचन माँगने को कहा, लेकिन बलि ने कहा-जब आवश्यकता होगी, तब माँग लेंगे।
इधर अकम्पन आचार्य सात सौ मुनियों के संघसहित देश में विहार करते-करते तथा भव्य जीवों को वीतरागी धर्म का उपदेश
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.