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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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जैनसंघ को बड़ी चिन्ता और दुःख हो रहा था । मुनियों का उपसर्ग दूर न हो, तब तक के लिए सब श्रावकों ने अन्न-जल का त्याग कर दिया।
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अरे, मोक्ष के साधक सात सौ मुनियों के ऊपर ऐसा घोर उपसर्ग देखकर प्रकृति भी प्रकम्पित हो उठी! आकाश में श्रवण, नक्षत्र मानो काँप रहा हो ! ऐसा एक क्षुल्लकजी ने देखा और उनके मुख से हाहाकार निकल पड़ा। उन्होंने आचार्य से बात की । आचार्य महाराज ने निमित्तज्ञान से जानकर कहा कि – अरे ! इस समय हस्तिनापुर में सात सौ मुनियों के संघ पर बलिराजा घोर उपसर्ग कर रहा है और मुनियों का जीवन भय में है ।
क्षुल्लकजी ने पूछा प्रभो! उन्हें बचाने का कोई उपाय ? आचार्य ने कहा हाँ, विष्णुकुमार मुनि उनका उपसर्ग दूर कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसी विक्रियाऋद्धि प्रगट हुई है कि वे अपना रूप जितना बनाना चाहें बना सकते हैं, परन्तु वे अपनी आत्मसाधना में लीन हैं, उन्हें अपनी ऋद्धि की और मुनियों के उपसर्ग की खबर भी नहीं है ।
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यह बात सुनकर आचार्य की आज्ञा लेकर क्षुल्लकजी शीघ्र ही विष्णुकुमार मुनि के पास गए और उन्हें सारा वृत्तान्त सुनाया तथा प्रार्थना की कि हे नाथ! आप विक्रियाऋद्धि द्वारा मुनियों के इस उपसर्ग को शीघ्र दूर करें ।
यह बात सुनते ही विष्णुकुमार मुनि के अन्तर में सात सौ मुनियों के प्रति परम वात्सल्यभाव प्रगट हुआ । विक्रियाऋद्धि की परीक्षा हेतु उन्होंने अपना हाथ लम्बा किया तो वह मानुषोत्तर पर्वत तक समस्त मनुष्यलोक में फैल गया। वे शीघ्र ही हस्तिनापुर आ
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