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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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धर्म की कमाई का अवसर
आत्मा का अनुभव करके मोक्ष की साधना का यह मौसम है। श्रीगुरु-सन्तों के प्रताप से सम्यग्दर्शनरूपी महारत्न प्राप्त हो और अनन्त अतीन्द्रिय आनन्द का लाभ हो - ऐसा यह अवसर है। यह धर्म की कमाई का अवसर है... उसे हे जीव ! तू चूक
मत... प्रमाद मत कर... अन्यत्र मत रुक।
अरे ! ऐसा मनुष्यपना और सत्यधर्म के श्रवण का एक-एक क्षण महामूल्यवान है, अरबों रत्न देने पर भी ऐसा एक क्षण प्राप्त होना कठिन है। भगवान ! ऐसा मनुष्यभव तू बाहर के व्यापार में व्यतीत करता है, उसके बदले आत्मा के लाभ का व्यापार कर... उपयोग को अन्तर्मुख करके आत्मा का ग्राहक हो... पर का ग्रहण माना है, उसे छोड़ दे और आत्मा का ग्राहक शीघ्रता से हो। उसमें एक क्षण का प्रमाद भी मत कर ! एक क्षण की कमाई से तुझे अनन्त काल का सिद्ध- सुख प्राप्त होगा ।
भाई ! यह मनुष्यभव का अल्प काल तो आत्महित का मौसम है, धर्म की कमाई का यह अवसर है। इसमें जिसने धर्म की कमाई नहीं की, अर्थात् भव-भ्रमण के नाश का और मोक्षसुख की प्राप्ति का उपाय जिसने नहीं किया, उसके मनुष्यपने को धिक्कार है।
अरे जीव ! परद्रव्य के ग्रहण की बुद्धि से तो तू संसार के दुःख में पिल रहा है । इसलिए पर का ग्राहकपना तू शीघ्रता से छोड़ और शीघ्रता से स्वद्रव्य का ग्राहक हो । अरे! तूने आत्मा को भूलकर अनन्त काल से भव - भ्रमण किया है... अब तो स्व-पर की
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