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[सम्यग्दर्शन : भाग-4
सम्यक्त्व का पहला पाठ
सिद्धपद का साधक जीव, मङ्गलाचरण के पहले ही पाठ में कहता है कि अहो शुद्धात्मस्वरूप को प्राप्त सिद्धभगवन्तों! जैसे आप, वैसा मैं... 'तुम सिद्ध... मैं भी सिद्ध'-ऐसे आपके समान मेरे शुद्धस्वरूप को लक्ष्य में लेकर नमस्कार करता हूँ, उल्लासपूर्वक मेरे आत्मा में सिद्धपना स्थापित करता हूँ। इस प्रकार सिद्धस्वरूप के ध्येय से मेरा साधकभाव शुरु होता है।
इस प्रकार समयसार के पहले ही पाठ में आचार्यदेव कहते हैं कि हे जीव! तेरे आत्मा में तू सिद्धपना स्थापित कर। जैसा सिद्ध वैसा मैं'- ऐसे लक्ष्यपूर्वक निजस्वरूप को ध्याने से महा आनन्दसहित तुझे सम्यग्दर्शन होगा।
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