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परमात्मने नमः
मानव जीवन का महान कर्त्तव्य
सम्यग्दर्शन
(भाग-4)
सिद्धप्रभुजी! आओ दिल में.... सम्यक्त्व की आराधना का जो परम मङ्गल महोत्सव, उसके प्रारम्भ में, हे सिद्ध भगवन्तों! आप मेरे अन्तर में पधारो... सम्यक्त्व के ध्येयरूप जो शुद्ध आत्मा, उसके प्रतिबिम्बस्वरूप ऐसे हे सिद्ध भगवन्तों! स्वसंवेदनरूप भक्तिपूर्वक मैं आपको मेरे आत्मा में विराजमान करता हूँ... आपके जैसे शुद्धात्मा को ही मेरे साध्यरूप स्थापित करके, उसका मैं आदर करता हूँ और अन्य समस्त परभावों का आदर छोड़ता हूँ। इस प्रकार आपको मेरे आत्मा में स्थापित करके, मैं सम्यक्त्वरूप साधकभाव का अपूर्व प्रारम्भ करता हूँ। उसमें हे सिद्धभगवन्तों! हे पञ्च परमेष्ठी भगवन्तों! आप पधारो... पधारो... पधारो...! __ आत्मा का रङ्ग लगाकर, मैं मेरे सम्यक्त्व की आराधना के लिये तत्पर हुआ हूँ; उसमें मङ्गल में, सिद्धभगवान-समान आत्मस्वरूप पहचानकर सम्यक्त्व की आराधना में हे सन्त गुरुओं! आपको उत्तम आत्मभाव से नमस्कार करता हूँ।.
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