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________________ www.vitragvani.com 172] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 सेठ की बात सुनकर चौकीदार शर्मीन्दा होकर वापस चले गए और इस प्रकार एक मूर्ख आदमी की भूल के कारण होनेवाली धर्म की निन्दा रुक गयी। - इसे उपगूहन कहते हैं । जिस प्रकार एक मेढ़क खराब होने से कहीं सारा समुद्र खराब नहीं हो जाता, उसी प्रकार किसी मूर्ख-अज्ञानी मनुष्य द्वारा भूल हो जाने से कहीं पवित्र जैनधर्म मलिन नहीं हो जाता।। ___ जैसे माता इच्छा करती है कि मेरा पुत्र उत्तम गुणवान हो, परन्तु पुत्र में कोई छोटा-बड़ा दोष दिखायी दे तो वह उसे प्रसिद्ध नहीं करती; किन्तु ऐसा उपाय करती है कि उसके गुणों की वृद्धि हो। उसी प्रकार धर्मात्मा भी धर्म का अपवाद हो, ऐसा नहीं करते, लेकिन जिससे धर्म की प्रभावना हो, वह करते हैं। किसी गुणवान धर्मात्मा में कदाचित् कोई दोष आ जाए तो उसे गौण करके उसके गुणों की मुख्यता रखते हैं और एकान्त में बुलाकर, उन्हें प्रेम से समझाकर जिस प्रकार उनके दोष दूर हों और धर्म की शोभा बढ़े, वैसा करते हैं। ___लोगों के चले जाने के बाद जिनभक्त सेठ ने भी उस सूर्य चोर को एकान्त में बुलाकर उलाहना दिया और कहा – भाई! ऐसा पापकार्य तुझे शोभा नहीं देता। विचार तो कर कि यदि तू पकड़ा गया होता तो तुझे कितना दु:ख होता। अतः इस धन्धे को तू छोड़। __ वह चोर भी सेठ के उत्तम व्यवहार से प्रभावित हुआ और अपने अपराध की क्षमा माँगते हुए बोला कि हे सेठ! आपने ही मुझे बचाया है, आप जैनधर्म के सच्चे भक्त हो; लोगों के सामने आपने मुझे सज्जन धर्मात्मा कहा है, तो अब मैं भी चोरी छोड़कर Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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