________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग -4]
सचमुच सज्जन धर्मात्मा बनने का प्रयत्न करूँगा। जैनधर्म महान है, और आप जैसे सम्यग्दृष्टि जीवों द्वारा वह शोभायमान है ।
इस प्रकार सेठ के उपगूहन गुण के द्वारा धर्म की प्रभावना हुयी ।
[ 173
(बन्धुओ ! यह कथा हमें ऐसी शिक्षा देती है कि साधर्मी के किसी दोष को मुख्य करके धर्म की निन्दा हो, वैसा नहीं करना, परन्तु प्रेमपूर्वक समझाकर उसे दोषों से छुड़ाना चाहिए; और धर्मात्मा के गुणों को मुख्य करके उसकी प्रशंसा द्वारा धर्म की वृद्धि हो, वैसा करना चाहिए।)
LE
पाप करके तुझे कहाँ जाना हैं ?
दुनिया में मान-सम्मान मिले, सेठ - पद मिले, पाँच-पच्चीस करोड़ रुपये इकट्ठा करे, दो - पाँच कारखाने लगाये और बड़ा उद्योगपति कहलाये, परन्तु भाई ! इसमें तेरा क्या बढ़ा ? पाप करके तुझे मरकर कहाँ जाना हैं ? अहाहा.... ! जिसकी महत्ता के आगे, सिद्धपर्याय की महत्ता भी अल्प है, गौण है - ऐसा अपना त्रिकाली पूर्णानन्द सागर चैतन्य द्रव्यस्वभाव की समझ और रुचि के लिए समय नहीं निकाला; बाहर में व्रत, नियम, भक्ति, पूजा इत्यादि में धर्म मानकर रुक गया, परन्तु वह शुभभाव तो राग है, आत्मा का शुद्धभावरूप धर्म नहीं है।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.