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________________ www.vitragvani.com 150] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 यह विचार करके कि सेठ ने जो कहा है, वह सत्य ही होगा। यह सोचकर फिर जाकर छींके में बैठ जाता। इस तरह बारम्बार वह छींके में चढ़-उतर कर रहा था; किन्तु निःशङ्क होकर वह डोरी काट नहीं पाता था। __ जैसे चैतन्यभाव की निःशङ्कता बिना शुद्ध-अशुद्ध विकल्पों के बीच झूलता हुआ जीव, निर्विकल्प अनुभवरूप आत्मविद्या को नहीं साध सकता, वैसे ही उस मन्त्र के सन्देह में झूलता हुआ वह माली, मन्त्र को नहीं साध पाता था। इतने में अंजन चोर भागता हुआ वहाँ आ पहुँचा और माली को विचित्र क्रिया करते देखकर उससे पूछा – हे भाई! ऐसी अन्धेरी रात में तुम यह क्या कर रहे हो? सोमदत्त माली ने उसे सब बात बतायी। वह सुनते ही उसको उस मन्त्र पर परम विश्वास जम गया, और कहा कि लाओ! मैं यह मन्त्र साधूं। ऐसा कहकर श्रद्धापूर्वक मन्त्र बोलकर उसने निःशङ्क होकर छींके की डोरी काट दी, आश्चर्य! नीचे-गिरने के बदले बीच में ही देवियों ने उसे साध लिया, और कहा कि मन्त्र के प्रति तुम्हारी नि:शङ्क श्रद्धा के कारण तुम्हें आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हो गयी है; अब आकाशमार्ग से तुम जहाँ जाना चाहो, जा सकते हो। अब अंजन चोरी छोड़कर जैनधर्म का भक्त बन गया; उसने कहा कि जिनदत्त सेठ के प्रताप से मुझे यह विद्या मिली है, इसलिए जिन भगवान के दर्शन करने वे जाते हैं, उन्हीं भगवान के दर्शन करने की मेरी इच्छा है। [बन्धुओ ! यहाँ एक बात विशेष लक्ष्य में लेने की है; जब Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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