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[ सम्यग्दर्शन : भाग-4
सम्यग्दर्शन के आठ अङ्गों की कथाएँ
सम्यक् सहित आचार ही संसार में एक सार है, जिन ने किया आचरण उनकी नमन सौ-सौ बार है । उनके गुणों के कथन से गुण ग्रहण करना चाहिये, अरु पापियों का हाल सुनकर पाप तजना चाहिये ॥
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अपने शुद्धात्मा की अनुभूतिपूर्वक निःशङ्क श्रद्धा जिसे हुई, उस धर्मात्मा के सम्यग्दर्शन में नि:शङ्कितादि आठों निश्चय अङ्ग समा जाते हैं; उनके साथ व्यवहार आठ अङ्ग भी होते हैं । यद्यपि सभी सम्यग्दृष्टि जीव निःशङ्कतादि आठ गुण सहित होते हैं, परन्तु उनमें से एक-एक अङ्ग के उदाहरणरूप अञ्जन चोर आदि की कथा प्रसिद्ध है; उनके नाम रत्नकरण्ड श्रावकाचार में समन्तभद्रस्वामी ने निम्न भाँति लिखे हैं ।
अंजन निरंजन हुए उनने नहीं शंका चित धरी ॥ १ ॥ बाई अनंतमती सती ने विषय आशा परिहरी ॥ २ ॥ सज्जन उदायन नृपतिवरने ग्लानि जीती भाव से ॥ ३ ॥ सत्-असत् का किया निर्णय रेवती ने चाव से ॥४॥ जिनभक्तजी ने चोर का वह महादूषण ढँक दिया ॥५ ॥ जब वारिषेणमुनीश मुनि के चपल चित को थिर किया ॥ ६ ॥ सु विष्णुकुमार कृपालु ने मुनिसंघ की रक्षा करी ॥७॥ जय वज्रमुनि जयवंत तुमसे धर्ममहिमा विस्तरी ॥८ ॥
मुमुक्षुओं में सम्यक्त्व की महिमा जागृत करें और आठ अङ्गों के पालन में उत्साह प्रेरित करें, इसलिए इन आठ अङ्गों की आठ कथायें यहाँ दी जा रही हैं ।
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