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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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१. निःशङ्कित-अङ्ग में प्रसिद्ध अञ्जनचोर की कथा
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अंजनचोर! वह कहीं प्रारम्भ से ही चोर नहीं था; वह तो उसी भव से मोक्ष पानेवाला एक राजकुमार था। उसका नाम था ललितकुमार। अब तो वह निरंजन भगवान है, परन्तु लोग उसे अंजन चोर के नाम से पहचानते हैं।
उस राजकुमार को दुराचारी जानकर राज्य में से निकाल दिया था। उसने एक ऐसा अंजन सिद्ध किया कि जिसके आँजने से स्वयं अदृश्य हो जाए; उस अंजन के कारण उसे चोरी करना सरल हो गया और अंजन चोर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। चोरी के अलावा जुआ और वैश्यासेवन का महान पाप भी वह करता था। ___ एक बार उसकी प्रेमिका स्त्री ने रानी का सुन्दर रत्नाहार देखा
और उस हार के पहिनने की उसकी इच्छा हुयी। जब अंजन चोर उसके पास आया और उसने कहा कि यदि तुम्हें मेरे प्रति सच्चा प्रेम है, तो मुझे वह रत्नहार लाकर दो। ___ अंजन बोला – देवी ! मेरे लिए तो यह तुच्छ बात है – ऐसा कहकर वह तो चौदस की अँधेरी रात में राजमहल में घुस गया और रानी के गले में से हार निकालकर भाग गया।
रानी का अमूल्य हार चोरी हो जाने से चारों तरफ हाहाकार मच गया। सिपाही लोग दौड़े, उन्हें चोर तो दिखायी नहीं पड़ता था, परन्तु उसके हाथ में पकड़ा हुआ हार अन्धेरे में जगमगा रहा था। उसे देखकर सिपाहियों ने उसका पीछा किया। पकड़े जाने के भय
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