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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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उसमें बारम्बार उपयोग को झुकाता हुआ धर्मात्मा अपने आत्मा को जिनमार्ग में आगे बढ़ाता है, यह निश्चय से प्रभावना है। मिथ्यात्व के कुमार्ग से परान्मुख करके चैतन्य रथ में आत्मा को बैठाना और इस प्रकार चैतन्य रथ में बैठाकर आत्मा को जिनमार्ग / मोक्षमार्ग में ले जाना, वह धर्म की वास्तविक प्रभावना है; ऐसी प्रभावना से धर्मी को प्रतिक्षण निर्जरा होती जाती है और अप्रभावनाकृत बन्धन उसे नहीं होता। ऐसा सम्यग्दृष्टि का प्रभावना अङ्ग है ।
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इस प्रकार सम्यग्दृष्टि को अपने चैतन्यस्वरूप सम्बन्धी निःशङ्कता, चैतन्य से भिन्न परद्रव्यों के प्रति नि:काँक्षा इत्यादि ये अङ्ग होते हैं, वह बतलाया। ये आठ अङ्ग, आत्मस्वरूप के आश्रित हैं; इसलिए वे निश्चय हैं; और शुभरागरूप जो निःशङ्कता आदि आठ अङ्ग हैं, वे पर के आश्रित होने से व्यवहार है । यहाँ तो निर्जरा अधिकार है; इसलिए निर्जरा के कारणरूप निश्चय आठ अङ्गों का वर्णन आचार्यदेव ने आठ गाथाओं द्वारा किया है। इन आठ अङ्गरूपी तेजस्वी किरणों से जगमगाते सम्यग्दर्शनरूपी सूर्य का प्रताप सर्व कर्मों को भस्म कर डालता है । सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा, इन निःशङ्कता आदि आठ गुणों से परिपूर्ण ऐसे सम्यग्दर्शनरूपी सुदर्शन चक्र द्वारा समस्त कर्मों को घातकर मोक्ष को साधता है ।
अहो! निःशङ्कतादि आदि अङ्गरूपी दिव्य किरणों द्वारा ज्वाजल्यमान सम्यग्दर्शनरूपी सूर्य अपने दिव्य प्रताप द्वारा आठ कर्मों को भस्म करके आत्मा को अष्ट महागुणसहित सिद्धपद प्राप्त कराता है ।
- ऐसे सम्यक्त्वसूर्य का महान उदय जयवन्त वर्तो । •
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