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________________ www.vitragvani.com 144] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 महिमा जगत में कैसे बढ़े-ऐसा व्यवहार प्रभावना का भाव, धर्मी को आता है, परन्तु जिसने अन्तर में भगवान का और भगवान के कहे हुए ज्ञानमार्ग का वास्तविकस्वरूप पहचाना हो, अर्थात् ज्ञानस्वभावरूपी रथ में आरूढ़ होकर अपने में ज्ञानमार्ग की निश्चयप्रभावना की हो, उसे ही सच्ची व्यवहारप्रभावना होती है। ___आत्मा चैतन्यस्वरूपी है, उसे अनुभव में लेकर सम्यग्दृष्टि जीव, चैतन्यविद्यारूपी रथ में आरूढ़ होकर ज्ञानमार्ग में परिणमित होता है; इस प्रकार वह धर्मात्मा, जिनेश्वरदेव के ज्ञान की प्रभावना करनेवाला है। देखो, यह धर्मी की प्रभावना! 'प्र... भावना' अर्थात् चैतन्यस्वरूप की विशेष भावना कर-करके धर्मी जीव अपनी ज्ञानशक्ति का विस्तार करता है, यही प्रभावना है। ज्ञान की विशेष परिणतिरूप प्रभावना द्वारा धर्मी को निर्जरा ही होती जाती है। अपने ज्ञानस्वरूप की विशेष भावना ही जिनमार्ग की वास्तविक प्रभावना है। जैसे जिनेन्द्र भगवान के वीतरागबिम्ब को रथ इत्यादि में स्थापित करके बहुमानपूर्वक नगर में फिराया जाता है-इस प्रकार का शुभभाव वह व्यवहारप्रभावना है क्योंकि इस प्रकार भगवान की रथयात्रा इत्यादि देखकर लोगों को जैनधर्म की महिमा आती है और इस प्रकार जैनधर्म की प्रभावना होती है। शुभराग के समय ऐसा प्रभावना का भाव भी धर्मी को आता है। अहो, ऐसा वीतरागी जैनमार्ग! वह लोक में प्रसिद्ध हो और लोग उसकी महिमा जानेऐसा भाव धर्मात्मा को आता है और निश्चय से ज्ञान को अन्तर के चैतन्यरथ में जोड़कर स्वभाव की विशेष भावना द्वारा अपने ज्ञान की प्रभावना करता है। मैं ज्ञायक हूँ'-ऐसा जो अनुभव हुआ है, Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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