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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [143 ८. सम्यग्दृष्टि का प्रभावना अङ्ग ही चिन्मूर्ति मन-रथपंथ में, विद्यारथारूढ घूमता। जिनराजज्ञानप्रभावकर सम्यक्तदृष्टी जानना॥२३६॥ सम्यग्दृष्टि, टङ्कोत्कीर्ण एक ज्ञायकस्वभावमयता के कारण ज्ञान की समस्त शक्ति को विकासने द्वारा प्रभाव उत्पन्न करता होने से प्रभावना करनेवाला है। देखो, यह जिनमार्ग की प्रभावना! चैतयिता, अर्थात् सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा, विद्यारूपी रथ में आरूढ़ हुआ है, अर्थात् अपने ज्ञानस्वभावरूपी रथ में आरूढ़ हुआ है। उसने अपने ज्ञानस्वभावरूपी रथ का ही अवलम्बन लिया है... और उस ज्ञानरथ में आरूढ़ होकर मनरूपी रथ-पंथ में, अर्थात् ज्ञानमार्ग में ही भ्रमण करता है। इस प्रकार स्वभावरूपी रथ में बैठकर ज्ञानमार्ग में प्रयाण करता हुआ, ज्ञानस्वरूप में परिणमता हुआ, सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा, जिनेश्वर के ज्ञान की प्रभावना करता है। अन्तर में ज्ञानस्वभाव में एकाग्रता द्वारा धर्मी को ज्ञान का विकास ही होता जाता है, यही भगवान के मार्ग की वास्तविक प्रभावना है। इसके अतिरिक्त हीराजड़ित सोना-चाँदी के रथ, कि जिसे उत्तम हाथी, घोड़ा इत्यादि जोड़ें हों, उसमें जिनेन्द्र भगवान को या भगवान के कथित परमागम को विराजमान करके, रथयात्रा द्वारा जगत् में उनकी महिमा प्रसिद्ध करना, वह व्यवहार प्रभावना है। अहो! इन जिनेश्वर भगवान ने हमें मुक्ति का वीतरागमार्ग बतलाया! - ऐसे भगवान के मार्ग के प्रति अतिशय बहुमान होने से उनकी Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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